रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव
- By Vinod --
- Saturday, 26 Feb, 2022
Condemnation motion against Russia
रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष में रूस जहां यूक्रेन पर नियंत्रण हासिल करने के लगभग अंतिम चरण में पहुंच चुका है, वहीं यूक्रेन को न अमेरिका समेत नाटो देशों से कोई समर्थन हासिल हो पाया है और न ही अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ समर्थन हासिल करने की पश्चिमी देशों की कोशिश कामयाब हुई है। रूस के खिलाफ लाए गए निंदा प्रस्ताव पर 11 वोट पड़े हैं, लेकिन इस दौरान भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों की इस वोटिंग से दूरी रूस के हौसले को बढ़ाती है। भारत के लिए यह विडम्बनापूर्ण स्थिति है, क्योंकि भारत की संस्कृति और संस्कार कभी युद्ध के समर्थक नहीं रहे हैं, यहां महाभारत और उसके बाद तमाम ऐसे युद्ध लड़े गए हैं, जोकि अब इतिहास में बेहद मोटे अक्षरों में दर्ज हैं। खुद भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन और चीन के साथ एक युद्ध लड़ा है, लेकिन हमेशा रक्षात्मक रह कर। हालांकि रूस ने यूक्रेन पर हमलावर होकर उसकी संप्रभुता को खत्म करने की कोशिश की है। एक देश के नागरिकों को स्वतंत्र रहना उनका अधिकार है, लेकिन अगर दूसरा देश किसी पर हमला करता है, तो यह उस देश की संप्रभुता और उसकी अखंडता को नष्ट करना होता है। ऐसे में प्रत्येक को उसका जवाब देने का अधिकार है, लेकिन यूक्रेन के मामले में भारत की यह चुप्पी कूटनीतिक है। जोकि समय की मांग भी है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गए निंदा प्रस्ताव पर सह-प्रायोजक अमेरिका और अल्बानिया समर्थन जुटाने के लिए इससे हिचकिचाने वाले देशों को एक साथ लाने की कवायद में जुटे रहे। लेकिन इस दौरान भारत और चीन ने दूरी बना ली। यह एकाएक घटी घटना नहीं है, चीन की बीते वर्षों में रूस के साथ नजदीकियां बढ़ती गई हैं, चीन की जरूरत रूस के साथ खड़े रहने की है। ऐसा वह अपने आर्थिक हितों के लिए कर रहा है, लेकिन भारत की यह विवशता सदियों पुरानी दोस्ती और इस पल-पल बदलती दुनिया में एक मजबूत सहयोगी के साथ खड़े रहने की प्रतिबद्धता है। पूरा विश्व भारत के संबंध में बखूबी जानता है कि वह कभी भी किसी अन्यायपूर्ण गतिविधि का हिस्सा नहीं हो सकता, लेकिन जब पाकिस्तान, भारत पर हमला करता है, तब अमेरिका और दूसरे देश तो पाकिस्तान की मदद में खड़े होते ही हैं, यूक्रेन जैसा छोटा देश पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई करता है। क्या ऐसे में यूक्रेन के समर्थन में भारत को रूस से नाराजगी मोल लेनी चाहिए? जाहिर है, भारत की कोई भी सरकार ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहेगी। बेशक, यूक्रेन में मानवता पर संकट है और रोजाना सैकड़ों लोगों जिनमें सैनिक भी शामिल है, की जान जा रही है और इसका दुख भारत के प्रत्येक नागरिक को होगा। हालांकि इस दौरान दोस्त और दुश्मन की पहचान अच्छे से हो रही है। चीन के पास वीटो पावर है, जिसका मतलब है कि वह किसी फैसले को निरस्त करने की क्षमता रखता है, लेकिन इसके बावजूद उसने भी अपने सहयोगी देश के साथ वीटो का इस्तेमाल करने के बजाय इससे दूरी बनाई है, जोकि कूटनीतिक उपलब्धि के तौर पर देखी जा रही है।
इस मामले में अमेरिका समेत दूसरे पश्चिमी देशों की स्थिति बेहद साफ हो गई है। अमेरिका और नाटो देशों ने यूक्रेन को पहले इस युद्ध के लिए भडक़ाया, उसे मदद पहुंचाने का आश्वासन देकर रूस के समक्ष चुनौती बनने को उकसाया लेकिन अब जब यूक्रेन संकट में है और लगातार क्षति झेल रहा है, तब अमेरिका और उसके मित्र देश सिर्फ बातें करने के और कुछ नहीं कर पा रहे हैं। रूस पर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, लेकिन इन प्रतिबंधों का नुकसान इन देशों को ही पहुुंचने से कोई अमान्य नहीं कर सकता। वैसे, पश्चिमी देशों का यह दोहरा मापदंड है कि अब वे यूक्रेन के समर्थन में रूस के खिलाफ खड़े हो रहे हैं, लेकिन दुनिया में दूसरे देश भी हैं, जिनकी मदद के लिए वे आगे नहीं आते। भारत-पाक के बीच संघर्ष में ब्रिटेन मूक दर्शक बना देखता रहा है वहीं चीन के साथ हुए संघर्ष में भी उसने इसकी आलोचना करना जरूरी नहीं समझा। फ्रांस, जर्मनी और दूसरे देश भी मौका देखकर अपनी विदेश नीति को अंजाम दे रहे हैं। रूस की आलोचना हो रही है, लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का उसे मूक समर्थन दुनिया को यह बताने को काफी है कि भारत की विदेश नीति अब भी एकला चलो की है, वह किसी के भी पीछे नहीं जाएगा लेकिन जो उसके साथ खड़ा होगा, वह उसका साथ जरूर देगा। रूस अनेक मौकों पर यह कह चुका है कि भारत पर हमला, उस पर हमला माना जाएगा।
मालूम हो, भारत की ओर से इस मसले पर कहा गया है कि मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। भारत ने ‘खेद’ जताते हुए कहा कि कूटनीति का रास्ता छोड़ दिया गया। यह सच भी है, क्योंकि अमेरिका और दूसरे देशों ने बातचीत की आड़ में यूक्रेन को उकसाने की गतिविधि जारी रखी, हकीकत में रूस की सुरक्षात्मक चिंताओं को समझने की कोशिश नहीं की गई है। रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत को आगे बढ़ाया जाना चाहिए था, लेकिन पश्चिमी देशों ने इसे अपनी हेठी समझा कि अगर यह बातचीत किसी सिरे चढ़ी तो इससे उनका महत्व कम हो जाएगा और नाटो का तो बिल्कुल। हालांकि रूस की ओर से यह चेतावनी प्रभावी है कि कोई और देश उनके बीच में आया तो उसका अंजाम और बुरा होगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यह जुनून यूक्रेन पर भारी पड़ रहा है, लेकिन यूक्रेन ने दूसरों की सीख पर अपना जो नुकसान कर लिया है, वह उसे सदियों तक सालता रहेगा। इस युद्ध को तत्काल रोक कर मानवता को बचाए जाने की जरूरत है।